संस्कृत विभाग , गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय , हरिद्वार तथा संस्कृत - संस्कृति विकास संस्थान, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में 7 एवं 8 दिसम्बर 2023 को "श्रेष्ठ भारत के निर्माण में संस्कृत की भूमिका" इस विषय पर द्विदिवसीया अन्ताराष्ट्रिया शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दिनाङ्क 7 दिसम्बर 2023 को प्रात 10:30 बजे उद्घाटन सत्र का आरम्भ हुआ। इस उद्घाटन सत्र का शुभारम्भ वैदिक मङ्गलाचरण तथा दीपप्रज्ज्वलन के साथ किया गया। सभागार में उपस्थित सभी अभ्यागतों ने कुलगीत का गान किया, इस उद्घाटन सत्र के मुख्यातिथि के रूप में पतञ्जलि विश्वविद्यालय के कुलपति व आयुर्वेद मनीषी आचार्य बालकृष्ण जी आभासीय पटल के माध्यम से इस शोधसंगोष्ठी के हिस्सा बने। विद्वद्वरेण्य आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि संस्कृत को न केवल पाठ्यक्रम में निहित एक भाषा के रूप में अपितु जीवन पद्धति के रूप में स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा किललोगों में संस्कृत व संस्कृति को लेकर जिज्ञासा का भाव बढ़ रहा है, अतः हमें उसे कार्यरूप में परिणत करने का संकल्प लेना चाहिए। इस सत्र के मुख्यवक्ता राष्ट्रपति सम्मान से विभूषित प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय जी (पूर्वसचिव सन्दीपनी वेद विद्या प्रतिष्ठान , उज्जैन)ने अपने श्रेष्ठ विचार प्रस्तुत करते हुए कहा - संस्कृत एक उदात्त संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा है। इसी सत्र में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेशचन्द्र शास्त्री जी भी उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ भारत तभी तक श्रेष्ठ भारत रहेगा, जब तक उसका राष्ट्रिय चरित्र रहेगा। तदनन्तर इस अन्ताराष्ट्रिया संस्कृत शोध संगोष्ठी में सुदूर स्थित कनाडा देश से विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ सञ्जय जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि समाज में परिवर्तन की अभिलाषा रखते हुए हमें सर्वप्रथम स्वयं में परिवर्तन करना चाहिए, इसी बात की पुष्टि करते हुए उन्होंने आचार्य चाणक्य का उद्धरण देते हुए कहा कि राजा स्वयं पर विजय प्राप्त करके ही दूसरे राज्यों पर विजय प्राप्त कर सकता है। साथ ही बृहदारण्यकोपनिषद् के विभिन्न उदाहरणों को प्रस्तुत कर सामाजिक समरसता पर भी प्रकाश डाला। इस उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति सोमदेव शतांशु जी ने अपने उद्बोधन से शोधच्छात्रों का मार्गदर्शन किया। भारत शब्द का अर्थप्रतिपादन करते हुए उन्होंने कहा कि सभी का भरण-पोषण करने वाला होने से ही वस्तुत: भारत को भारत कहा जाता है। अनेक संस्कृत सुभाषितों को उद्धृत करते हुए प्राचीन भारत की श्रेष्ठता को द्योतित कर पुनः उन्हीं भावों को जीवन में धारण करने का संदेश दिया। श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति सुकान्त सेनापति जी ने कहा कि समस्त ज्ञान का मूलाधार वेद हैं और हमारी संस्कृति वेदाधारित है, जिसका सृष्टि के आदिकाल से अभी तक विनाश नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा सर्वविध व्यावहारिक ज्ञानों का आधार है। संस्कृत संस्कृति विकास संस्थान की राष्ट्रिया उपाध्यक्षा प्रो. कान्ता भाटिया जी ने कहा कि जन - जन तक भारतीय संस्कृति का प्रचार करना हमारा उद्देश्य है। उन्होंने संस्कृत महाकवि भर्तृहरि द्वारा प्रतिपादित विद्यातपादि गुणों को संस्कृति के मूलभूत गुणों के रूप में सिद्ध किया। संस्कृत संस्कृति विकास- संस्थान के राष्ट्रिय अध्यक्ष प्रो. राधाकान्त त्रिपाठी जी ने उद्घाटनसत्र की समाप्ति पर श्रेष्ठ भारत में संस्कृत की भूमिका को प्रतिपादित करते हुए संस्कृत को राष्ट्र के प्राण के रूप में स्थापित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रचलित शिक्षा व्यवस्था मात्र उदरपूर्ति तक ही सीमित है जबकि हमारी शिक्षाप्रणाली को राष्ट्रहित हेतु होना चाहिए। दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. वाचस्पति त्रिपाठी ने आशीर्वचन के रूप में भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन किया| सभी अभ्यागत मनीषियों का वाचिक स्वागत संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालङ्कार ने किया तथा संयोजक डाॅ. वेदव्रत रहे| अनेकानेक विश्वविद्यालयों से समागत शोधच्छात्रों ने द्वितीय, तृतीय इत्यादि अनेक सत्रों में अपने शोधपत्रों की प्रस्तुति दी| तृतीय सत्र में प्रो. विनोद जी ने शोध - पत्र को प्रस्तुत करने की विधि पर चर्चा करते हुए निष्काम कर्म की अवधारणा का ज्ञान कराया तथा राष्ट्रनिर्माण में निष्काम कर्म की भूमिका को द्योतित किया। इस सत्र के अध्यक्ष गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के आचार्य डाॅ, बबलू वेदालङ्कार ने अपने अध्यक्षीयोद्बोधन द्वारा सभी को कृतार्थ किया। पुन: 8 दिसम्बर को 12:30 बजे समापन सत्र प्रारम्भ हुआ। इस सत्र का प्रारम्भ भी वैदिक मङ्गलाचरण के साथ किया गया। इस समापन सत्र में सभी आचार्यों ने राष्ट्र-निर्माण में संस्कृत की महती भूमिका का ज्ञान कराते हुए समस्त छात्रों का पथप्रदर्शन किया। इस सत्र में पतञ्जलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित प्रो. महावीर अग्रवाल जी विशिष्टातिथि के रूप में इस अन्ताराष्ट्रिया कार्यशाला का हिस्सा बने, उन्होंने कहा कि संस्कृत में ही भारत का गौरव निहित है, संस्कृत के माध्यम से ही एक उत्तम शिक्षा, स्वास्थ्य,न्याय व राज्य व्यवस्था की कल्पना की जा सकती है।इसी सत्र में राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरुपति के कुलपति प्रो, जि. एस. आर. कृष्णमूर्ति मुख्यवक्ता के रूप में, प्रो. भगवतिशरण शुक्ल, अमेरिका देश से प्रो० बलराम सिंह जी, विश्व हिन्दू परिषद् के पूर्व राष्ट्रिय सचिव श्री जुगल किशोर जी इत्यादि विद्वान् उपस्थित रहे। अन्त में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालङ्कार जी ने समस्त विद्वज्जनों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए इस कार्यक्रम का समापन किया। इस कार्यक्रम में प्राच्यविद्या विद्या व विज्ञान संकाय के समस्त आचार्यों व छात्रों ने प्रतिभाग किया, विशेष रूप से वेद विभाग के आचार्य डाॅ.दीनदयाल ,डाॅ. रामचन्द्र, व दर्शन विभाग के डाॅ बबलू वेदालंकार, डाॅ. भारत वेदालंकार, डाॅ. विपिन व आशीष व समस्त शोधच्छात्रों ने प्रतिभाग किया।